Ramnavmi 2024: रामनवमी का मतलब होता है बुराई पर अच्छाई की जीत। आज यानी 17 अप्रैल को पूरे भारत में रामनवमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है इस पर्व को मनाने का मुख्य मकसद है कि भगवान राम ने इस दिन अपनी विजय यात्रा की शुरुआत की थी। रामनवमी का त्यौहार यह सीख देता है की बुराई हमेशा हार जाती है और अच्छाई को कोई हरा नहीं सकता। तो चलिए इस रामनवमी भगवान श्री राम के जीवन से जानते हैं, सही जीवन जीने का तरीका।
क्यों कहते है श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम?
भगवान राम ने अपने कुछ खास गुणों से रावण पर विजय पाई थी और माता सीता को रावण के चंगुल से बचाया था। एक राजा होकर एक राजा के पुत्र होकर उन्होंने अपने जीवन में जो कष्ट झेला, उन कष्टों का समाधान निकाला उनमें जो सामाजिक समानता, सेना को प्रोत्साहित करने की क्षमता, शांति से लक्ष्य की ओर बढ़ना त्याग और संयम के गुण थे इन सभी ने भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। जीवन को सफल बनाने के लिए भगवान राम के इन्हीं गुणों से प्रेरणा ली जा सकती है वह जिस तरह से समय और स्थिति को देखकर आगे की रणनीति बनाते थे समस्याओं से लड़ने का रास्ता ढूंढते थे उन गुणों को हर व्यक्ति को सीखना चाहिए।
भगवान राम से सीखें जीने का तरीका
भगवान राम को दिव्य शक्ति प्राप्त थी, तो वह चाहते तो कुछ भी एक इशारे में कर सकते थे वह चाहते तो खुद को भगवान बता कर बुराइयां खत्म कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने हमेशा एक सामान्य मनुष्य का जीवन जीया और उसका एकमात्र कारण यह था कि उनके जीवन से लोग प्रेरणा लें। भगवान राम ने खुद उस रास्ते को चुना जिसे लोग अपना आदर्श बना सके और इसमें कोई दो राह नहीं है, कि भगवान श्री राम के जीवन से आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं।
भगवान राम देवी शक्ति के कारण भगवान नहीं बने थे उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए उन्होंने केवट और शबरी को गले भी लगाया और लोगों को सामाजिक समानता का मूल्य सिखाए। हमें भगवान श्री राम से यह सीखना चाहिए की समाज में रहने वाला हर व्यक्ति प्रेम और इज्जत दोनों का हकदार है। भगवान श्री राम चाहते तो केवट और शबरी को गले न लगाकर भी अपना वनवास सुखमय तरीके से बिता सकते थे लेकिन ऐसा करके उन्होंने सामाजिक समानता का मूल्य उत्पन्न किया।
भगवान श्री राम के जीवन से हम एक और मूल्य सीख सकते हैं और वह है एकता का मूल्य। तमिलनाडु के तट से लंका तक पुल बनाना उस वक्त इंसानों के बस की बात नहीं थी, हजारों लाखों की संख्या में भी लोग पुल बनाते तो उसमें सालों लग जाते लेकिन भगवान राम ने अपनी वानर सीना को इस तरह से प्रोत्साहित किया कि उन्होंने बहुत ही कम समय में पुल बना दिया वानर सीना और भगवान की एकता ने पुल खड़ा कर दिया।
भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था जिसमें 12 साल उन्होंने चित्रकूट में ही बताएं जब उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वन के सभी लोग उन्हें पहचानने लगे हैं इससे उनके उद्देश्य में व्यवधान पड़ सकता है तब वह वहा से अगले पड़ाव की ओर चल पड़े राम को आत्म प्रचार पसंद नहीं था वे चुपचाप रहकर काम करना पसंद करते थे और अपने बारे में किसी को अधिक बताना भी नहीं चाहते थे लेकिन विज्ञापन के इस युग में राम के चरित्र से एक सीख लेनी चाहिए कि बिना प्रचार के शांति से हमें अपने लक्ष्य की और चुपचाप होकर बढ़ाना चाहिए।
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