बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म, जिसकी शुरुआत छठी शताब्दी में हुई थी। गौतम बुद्ध इस धर्म के प्रवर्तक थे उन्होंने अपनी सोच विचार और शिक्षा से काफी लोगों के जीवन में परिवर्तन लाया। दुनिया भर के तमाम धर्म में अपने-अपने रीति रिवाज और नियम होते हैं। आज हम आपको बौद्ध धर्म की एक ऐसी परंपरा के बारे में बताएंगे जिसे सुनकर आपके भी होश उड़ जाएंगे।
जिस प्रकार हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति के मरने पर उसका दाह संस्कार किया जाता है और शव को जलाया जाता है, इस्लाम धर्म में मरने वाले लोगों के शव को दफनाया जाता है, लेकिन बौद्ध धर्म में ऐसा नहीं है। बौद्ध भिक्षुओं के मरने के बाद ना तो शव को दफनाया जाता है और ना ही जलाया जाता है। तो चलिए बौद्ध धर्म की इस अनोखी परंपरा के बारे में पूरे विस्तार से आपको बताते हैं।
अंतिम संस्कार का अनोखा तरीका
बौद्ध धर्म ऐसी परंपरा है कि मृत्यु के बाद शव को काफी ऊंची जगह पर ले जाया जाता है बौद्ध धर्म के लोगों का कहना है कि उनके यहां अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आकाश में पूरी की जाती है इसलिए शव को काफी ऊंची चोटी पर ले जाया जाता है। तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अंतिम संस्कार के लिए पहले से ही जगह मौजूद होती है वहां पहुंचने से पहले ही बौद्ध भिक्षु या लामा अंतिम संस्कार की जगह पर पहुंच जाते हैं इसके बाद शव की स्थानीय परंपराओं के मुताबिक पूजा की जाती है फिर एक विशेष कर्मचारी शव के छोटे-छोटे टुकड़े करता है इस विशेष कर्मचारियों को बौद्ध धर्म के अनुयाई रोज्ञापास कहते हैं।
शव के छोटे-छोटे टुकड़े करने के बाद रोज्ञापास जौ के आटे का घोल तैयार करता है और इसके बाद टुकड़ों को इस गोल में डुबाया जाता है। फिर इन जौ के आटे के घोल में शव के टुकड़ों को तिब्बत के पहाड़ों की चोटियों पर पाए जाने वाले गिद्धों का भोजन बनने के लिए डाल दिया जाता है। इतना ही नहीं जब गिद्ध और चील उन टुकड़ों को खा लेते हैं तो उनसे बच्ची अस्थियों को पीस कर चुरा बनाया जाता है इस चूरे को फिर से जो के आटे में घोल में डुबाया जाता है और पक्षियों का भोजन बनने के लिए छोड़ दिया जाता है।
आखिर क्यों है ऐसी परंपरा?
तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अंतिम संस्कार की इस जटिल परंपरा को मानने के पीछे कई कारण है। कई लोगों का ऐसा मानना है कि तिब्बत बहुत ऊंचाई पर बस होने के कारण यहां पेड़ आसानी से नहीं पनप पता ऐसे में शव का दाह संस्कार करने के लिए लकड़ियां इकट्ठा करना आसान नहीं।
इसके अलावा तिब्बत की जमीन काफी पथरीली है ऐसे में कब्र के लिए गहरा गड्ढा खोदना भी बहुत मुश्किल है इन सभी कारणों के अलावा बौद्ध धर्म की एक मान्यता के कारण भी अंतिम संस्कार की अजीब परंपरा निभाई जाती है। बौद्ध धर्म में मरने के बाद शरीर को खाली बर्तन माना जाता है माना जाता है कि सब को छोटे टुकड़ों में काटकर पक्षियों को खिलाने से उनका भला हो जाएगा। आत्म संस्कार की इसी पूरी प्रक्रिया को आत्म बलिदान कहा जाता है।
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